"तेरा घोष अति प्रखर है,
राणा तेरा नाम अमर है।"
वीरता और दृढ संकल्प के प्रतीक, मेवाड़ के सपूत, वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी की जयंती पर उन्हें नमन करता हू ।
#महाराणा_प्रताप_जयंती
त्याग, तपस्या, स्वतंत्रता के पुजारी प्रताप का जीवन वीरता , शौर्य और संघर्ष का प्रतीक है । महाराणा प्रताप के स्वाभिमान,सहास, पराक्रम और त्याग का सन्देश हम सभी के लिए प्रेरणादायी है।
भारतीय इतिहास में राजपूताने का गौरवपूर्ण स्थान रहा है। यहां के रणबांकुरों ने देश,जाति, धर्म तथा स्वाधिनता की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने में कभी संकोच नहीं किया । लेकिन महाराणा प्रताप उन चुनिंदा शासकों में से एक है । अमर राष्ट्रनायक , दृढ़ प्रतिज्ञ और स्वाधिनता के लिए जीवन भर मुगलों से मुकाबला करने वाले सहासिक रणबांकुर महाराणा प्रताप को जंगल -जंगल भटक कर घास की रोटी खाना मंजूर था , लेकिन किसी भी परिस्थिति व प्रलोभन में अकबर की अधीनता स्वीकार करना कतई मंजूर नहीं था।
महाराणा प्रताप के बारे में खास बातें
(1) 9 मई,1540ईसवीं को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में पिता उदयसिंह की 33वीं संतान और माता जयवंताबाई की कोख से जन्मे मेंवाड मुकूट-मणि महाराणा प्रताप जिन्हें बचपन में 'कीका' कहते थे। जो अपनी निडर प्रवृति, अनुशासन- प्रियता और निष्ठा,कुशल नेतृत्व क्षमता, बुजुर्गों व महिलाओं के प्रति विशेष सम्मानजनक दृष्टिकोण, ऊंच-नीच की भावनाओं से रहित, निहत्थे पर वार नहीं करने वाले, शस्त्र व शास्त्र दोनों में पारंगत एवं छापामार युद्ध कला में निपुण थे।
(2) महाराणा प्रताप के पास चेतक नाम का घोड़ा था , जो उन्हें सबसे प्रिय था। प्रताप की वीरता की कहानियों में चेतक अपना स्थान है उसकी फुर्ति ,रफ्तार और बहादुरी की हमेशा चर्चा रहती थी।
(3) वैसे तो महाराणा प्रताप ने मुगलों से कई लड़ाइयां लड़ी लेकिन लेकिन सबसे ऐतिहासिक लड़ाई थी- हल्दीघाटी का युद्ध जिसमें नेतृत्व वाली अकबर की विशाल सेना से आमना सामना हुआ। इस युद्ध में 20 हजार सैनिकों के साथ महाराणा प्रताप ने 80 हजार मुगल सैनिकों का सामना किया। यह मध्यकालीन भारतीय इतिहास का सबसे चर्चित युद्ध था इस इस युद्ध में महाराणा प्रताप का चेतक घायल हो गया था यह युद्ध अनिर्णय रहा है , महाराणा ने कभी भी स्वाभिमान नहीं छोड़ा और अकबर की अधीनता कभी भी स्वीकार नहीं की।
(4) 1582 में दिवेर के युद्ध में उन क्षेत्रों पर फिर से कब्जा कर लिया था जो कभी मुगलो के हाथों गंवा दिए थे । कर्नल टेम्स टा ने मुगलों के साथ हुए इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा था। 1585 तक लंबे संघर्ष के बाद वह मेवाड़ कराने में सफल रहे।
वीरता की कहानी
गिरा जहाँ पर खून ।
वहां का पत्थर-पत्थर जिन्दा है।
जिस्म नहीं है मगर नाम का
अक्षर-अक्षर जिंदा है....
जीवन में यह अमर कहानी,
अक्षर-अक्षर गढ़ लेना,
शौर्य कभी सो जाए।
तो,राणा प्रताप को पढ़ लेना।।
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